नेमप्लेट


मैं हूँ एक नेमप्लेट

कभी यहॉं लटक जाता हूँ, 

तो कुछ अंतराल के बाद 

कहीं और टांग दिया जाता हूँ। 



दरवाज़े के बाहर लटका 

मैं देखता रहता हूँ, 

चंद चेहरों में ओहदे का दबदबा,

तो कुछ की ऑंखों में अंजाना सा डर।

तमाम चेहरों पर हंसी और उल्लास 

तो कुछ के चेहरे गम से बदहवास



मैं देखता रहता हूँ, 

कुछ लोगों की ऑंखों में उम्मीदें, 

कुछ के दिलों में मायूसी, 

चंद चेहरों पर हैरत

तो कुछ दिलों में उदासी। 



मैं चश्मदीद हूँ 

लोगों के बदलते रंगत और हाव भाव का 

या फिर उनके अभिनय कौशल का। 



मेरे करीब से गुजरते हैं

कुछ प्रेम करने वाले तो, कुछ नफ़रत वाले चेहरे 

कुछ तटस्थ और कुछ सौम्य सादगी वाले चेहरे।

मैं दरवाज़े पर लटका सुनता रहता हूँ

चंद लोगों की खुसफुसाहटें, चंद साजिशें, 

कुछ का उपहास, 

तो कुछ का उन्मुक्त हास्य, 



मैं महसूस करता रहता हूँ

उनकी खामोशिया, उनकी दुश्वारियॉं, 

उनकी सरगोशियॉं उनकी तनहाईयॉं। 



मैं गवाह हूँ, 

उनकी मेहनत और लगन का 

उनके भीतर के जज़्बे का, 

कुछ बेहतर कर गुजरने के हौसले का। 



मैं राज़दार हूँ, 

दरवाज़े के बाहर के तमाम राज़ का 

और 

दरवाज़े के बाहर और भीतर के फर्क का।



मैं दरवाज़े पर लटका हुआ 

शरीक होता रहता हूँ, 

उनके तमाम सुख-दुख में, 



उनके गौरव के क्षणों में 

उनके हँसते मुस्कुराते पलों में। 

उनके त्योहारों में

उनके व्यवहारों में। 



मैं उन्हें बताना चाहता हूँ कि

मैं सिर्फ एक नेमप्लेट नहीं हूँ

मेरे भीतर भी एक इंसान है

जो सोचता है, समझता है

हँसता है, रोता है

फैसले करता है, 

कुछ सही, कुछ गलत

कभी नाराज़ तो कभी खुश होता है, 

कभी मायूस तो कभी अभिमान करता है

बिलकुल उन सब की तरह। 



मैं भी उनकी तरह बात करना चाहता हूँ

मिलकर हंसना चाहता हूँ

उनको समझना चाहता हूँ

उनके सुखदुख में शामिल होना चाहता हूँ

उनको अपनाना चाहता हूँ। 



उनके सपने बांटना चाहता हूँ

उनका राज़दार होना चाहता हूँ,

और चाहता हूँ कि वे

मुझे सिर्फ़ दरवाज़े पर न लटकाएं,



क्योंकि मैं सिर्फ एक नेमप्लेट नहीं हूँ

इस नेमप्लेट के साथ जुड़ी हैं

पद की गरिमा, तमाम जिम्मेदारियॉं

लोक सेवा की उम्मीदे, संस्था का मान सम्मान

सहकर्मियों की आशाएं, ग्राहकों का कल्याण 





लेकिन आज एकबार फिर 

एक दरवाजे से हटाकर मैं, 

दूसरे दरवाज़े पर टांग दिया जाऊंगा,

मैं एक नेमप्लेट हूँ।