मैं सीख रही हूँ हिंदी

मैं दक्षिण भारत से हूँ और हिंदी मेरी मातृभाषा नहीं है। दिल्ली आने के बाद मैंने हिंदी सीखनी शुरू की। यद्यपि, हिंदी लिखने में अभी भी मुझे अधिक प्रयास करना पड़ता है किन्तु अब मैं खूब हिंदी बोलती हूँ और पढ़ भी लेती हूँ। पिछले दिनों मैंने हिंदी पखवाड़ा के दौरान हिंदीतर भाषियों के लिए आयोजित हिंदी प्रतियोगिता में भाग लिया था जिसमें मुझे प्रोत्साहन पुरस्कार मिला। इस बात से मुझे हिंदी सीखने का और बल मिला। हाल ही में मोहम्मद इकबाल की पंक्तियों को लिखना सीखा जिनमें हिंदी की महता का सार है :    



           हिंदी हैं हम, वतन है, हिंदोस्तान हमारा



           हम बुलबुलें हैं इसकी,यह गुलिस्ताँ हमारा।



     सचमुच ही हिंदी  हमारे देश की आन, बान और शान है।  देश प्रेम से भरी हुई राष्ट्रकवि श्री मैथिलीशरण गुप्त की निम्न पंक्तियां भी लिखना सीख रही हूं :



           भरा नहीं जो भावों से, बहती जिसमें रसधार नहीं



           हृदय नहीं वह पत्थर है, जिसमें स्वदेश का प्यार नहीं।।



     मैंने हिंदी की कुछ अच्छी पंक्तियाँ भी अभ्यास के लिए चुनी हैं :



          हिंदी में काम करना देशभक्ति है, कर्म करना ही सही आसक्ति है।



          सृजन करे जो वो मातृशक्ति है, स्व का मोह त्याग ही विरक्ति है।।



          मन की बात कहना तो शक्ति है, पर क्या निष्काम कर्म विभक्ति है?



     कॉनकॉर के पुस्तकालय में भी बहुत अच्छी अच्छी हिंदी पुस्तकें हैं जो मेरे जैसे हिंदीतर भाषियों का मार्गदर्शन करती हैं। साथ ही, हिंदी विभाग के अलावा अन्य सहयोगियों से भी हिंदी सीखने में बहुत मदद मिलती है। सभी के सहयोग से हिंदी लिखना सीख रही हूँ।



     सच में, इसे ही कहते हैं :  सबका साथ, सबका विकास।