नानी मां, मेरी प्यारी नानी मां

दुनियां में जब मैंने पहली बार आंखे थी खोली,



मेरे सामने थी खड़ी, एक प्यारी सी सूरत भोली।



 



मुझे उन्होंने उठाया था, पहली बार जब हाथों में,



आज तक बस हुआ है, उनका कोमल भाव मेरी सांसों में।



 



मैं कभी नहीं भूल सकता इतनी प्यारी सी झोली,



जिस झोली में मेरी नानी मां ने मुझे सुनाई थी लोरी।



 



मेरी मां, मेरे मामा सभी बुलाते है उसको मां,



भगवान ने मुझे दी है, ऐसी प्यारी नानी मां।



 



आज वह मेरे साथ नहीं है फिर भी मैं नहीं हूं उदास



क्योंकि मेरी नानी मां ने मां को रखा है मेरे पास।



 



कभी मैं नहीं भूल सकता अपनी नानी मां का प्यार,



हर घड़ी हर पल मुझे याद रहेगा नानी मां का दुलार।



 



मैं तो हूं एक राजा बेटा अपनी नानी मां का,



मेरी नानी मां तो अनमोल रत्‍न है, इस सारे संसार का।



 



मां भी तो बनेगी एक दिन नानी,



तब उनको मैं कहूंगा,  मेरी नानी मां की कहानी।



 



सारे बच्चों का ख्याल रखनेवाली मां,



नानी मां, मेरी प्यारी नानी मां। 



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मैं सीख रही हूँ हिंदी

मैं दक्षिण भारत से हूँ और हिंदी मेरी मातृभाषा नहीं है। दिल्ली आने के बाद मैंने हिंदी सीखनी शुरू की। यद्यपि, हिंदी लिखने में अभी भी मुझे अधिक प्रयास करना पड़ता है किन्तु अब मैं खूब हिंदी बोलती हूँ और पढ़ भी लेती हूँ। पिछले दिनों मैंने हिंदी पखवाड़ा के दौरान हिंदीतर भाषियों के लिए आयोजित हिंदी प्रतियोगिता में भाग लिया था जिसमें मुझे प्रोत्साहन पुरस्कार मिला। इस बात से मुझे हिंदी सीखने का और बल मिला। हाल ही में मोहम्मद इकबाल की पंक्तियों को लिखना सीखा जिनमें हिंदी की महता का सार है :    



           हिंदी हैं हम, वतन है, हिंदोस्तान हमारा



           हम बुलबुलें हैं इसकी,यह गुलिस्ताँ हमारा।



     सचमुच ही हिंदी  हमारे देश की आन, बान और शान है।  देश प्रेम से भरी हुई राष्ट्रकवि श्री मैथिलीशरण गुप्त की निम्न पंक्तियां भी लिखना सीख रही हूं :



           भरा नहीं जो भावों से, बहती जिसमें रसधार नहीं



           हृदय नहीं वह पत्थर है, जिसमें स्वदेश का प्यार नहीं।।



     मैंने हिंदी की कुछ अच्छी पंक्तियाँ भी अभ्यास के लिए चुनी हैं :



          हिंदी में काम करना देशभक्ति है, कर्म करना ही सही आसक्ति है।



          सृजन करे जो वो मातृशक्ति है, स्व का मोह त्याग ही विरक्ति है।।



          मन की बात कहना तो शक्ति है, पर क्या निष्काम कर्म विभक्ति है?



     कॉनकॉर के पुस्तकालय में भी बहुत अच्छी अच्छी हिंदी पुस्तकें हैं जो मेरे जैसे हिंदीतर भाषियों का मार्गदर्शन करती हैं। साथ ही, हिंदी विभाग के अलावा अन्य सहयोगियों से भी हिंदी सीखने में बहुत मदद मिलती है। सभी के सहयोग से हिंदी लिखना सीख रही हूँ।



     सच में, इसे ही कहते हैं :  सबका साथ, सबका विकास।   



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खुशी

एक दिन मैंने “खुशी” से पूछा:-



ऐ “खुशी” तू  कहाँ मिलती है



क्या तेरा कोई पक्का पता है?



क्यों बन बैठी है अनजानी



आखिर क्या है तेरी कहानी?



सरोज (मैंने) ने कहाँ-कहाँ नहीं ढूंढा तुझको



पर तू कहीं न मिली मुझको।



ढूंढा ऊँची सोसाइटी के मकानों में



बडे-बडे मॉल की दुकानों में।



चाऊमीन, बर्गर, पिज़्ज़ा जैसे विदेशी पकवानों में



टाटा, अंबानी और अडानी जैसे चोटी के धनवानों में।



बाकी सब भी खुशी ही ढूंढ रहे थे,



बल्कि “सरोज” से ही पूछ रहे थे।



उम्र अब ढलान पर है,



हौंसला अब थकान पर है।



मैं भी हार नही मानूंगी



खुशी के रहस्य को जानूंगी।



बचपन में मिला करती थी,



सरोज साथ रहा करती थी।



पर जब से मेरे कर्तव्य और ज़िम्मेदारियों की सीढ़ी मुझसे बड़ी हो गई



मेरी खुशी मुझसे जुदा हो गई।



मैं फिर भी नही हारी।



मैंने अपने अन्दर की पीड़ा को मारा।



एक दिन जब अन्दर से आवाज यह आई



तू क्यों मुझको ढूंढ रही है घबराई



मैं तेरे ही अन्दर हूँ समायी।



मेरा नहीं है कुछ भी "मोल"।



धन में मुझको न तोल।



मैं बच्चों की मुस्कानों में हूँ।



पति के साथ चाय पीने मेंI



"परिवार" के संग जीने में।



माँ-बाप के आशीर्वाद मेंI



रसोई घर के पकवानों में।



बच्चों की सफलता में हूँI



माँ की निश्छल ममता में हूँ।



हर पल तेरे संग रहती हूँ।



और अक्सर तुझसे कहती हूँ।



मैं तो बस एक "अहसास" हूँ।



बंद कर दे तू मेरी तलाश।



मैं तो हूं तेरे ही पास...... बस तेरे ही पास।


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कोविड महामारी और इलाज

कोविड महामारी के इलाज हेतु   à¤¦à¤µà¤¾à¤à¤‚ कभी तो इतनी आवश्यक हो जाती है कि उनकी   ब्लैक मार्केटिंग शुरू à¤¹à¥‹ जाती à¤¹à¥ˆ जैसेकि इंजेक्शन रेमेडीसिवर । बहुत से  पढेे लिखेे  युवक तत्काल  पैसा कमाने के चक्कर मेंं  ब्लैक मार्केटिंग करते कानून केे फंंदे  में आ गए । अब चिकित्सा जगत फरमान करता है कि कोविड के इलाज हेतु इंजेक्शन रेमेडीसिवर  हटा दिया जाए । इन सबसे अच्छा तो योग और प्राणायम है। योग की à¤¶à¥à¤°à¥‚आत बहुत à¤†à¤¸à¤¾à¤¾à¤¨  औैर सामान्य होती है। इसका प्रभाव शरीर की मांसपेशियों  और अंंगो पर धीरेे धीरे पड़ता है। यह एक क्रमिक  प्रक्रिया  होती à¤¹à¥ˆà¥¤ जिसे एक केे बाद  एक करने à¤¸à¥‡ à¤¶à¤°à¥€à¤° को à¤²à¤šà¥€à¤²à¤¾à¤ªà¤¨ और मजबुती मिलती है। बच्चो से à¤²à¥‡à¤•à¤° बुढे तक आराम से कर सकते है।  



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राेेजगार के घटते अवसर

यह सही बात है  कि मौजुदा परिस्थितियोंं में रोजगार के अवसरों में कमी आई है à¥¤ कोविड महामारी ने तो इसमें इजाफा ही किया है। बहुत सारे उधोग धंंधे चौपट हो गए । विभिन्न प्रतियोगी परीक्षाााएं   à¤à¤¦ या à¤¸à¥à¤¥à¤—ित होने से   à¤¸à¥‡ भी युवााओं  को मिलने à¤µà¤¾à¤²à¥€  नौकरी में देरी à¤¹à¥‹ रही है। तकनीकी का à¤¬à¤¢à¤¼à¤¤à¤¾ दखल भी इसका एक कारण है à¥¤ आर्टिफिशियल इंटेलीजेेस जैसी तकनीक से   à¤¨à¥Œà¤•à¤¾à¤°à¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ं पर असर पडनाा तय है। सरकारी नौकरियों  मेंं कमी की à¤­à¤°à¤ªà¤¾à¤¾à¤ˆ के लिए निजी à¤•à¥à¤·à¥‡à¤¤à¥à¤° à¤•à¤¾ सहयोग लेना आज की à¤¸à¤–्त à¤œà¤°à¥‚रत  है । माननीय मंत्रियोंं नेेकई बार यह उजागर  किया à¤¹à¥ˆ कि सरकार का काम बिजनेस करना या उधोग चलााना नही है। निसंदेह सरकार का काम  à¤‰à¤§à¥‹à¤— चलााना नही है  लेकिन  चुनावी घोषणा में ये माननीय रोजगार का मुददा खूूब उछालते है।  सरकारी नौकरियों में कमी की भरपाई निजी क्षेेत्र कर सके , इसके लिए उन्हें प्रोत्साहन दिया जाना à¤†à¤µà¤¶à¥à¤¯à¤• है। 


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डर


वह एक कलाकार था

लेकिन उसकी कला चुभती बहुत थी

वह मनमौजी था, इसलिये

अपने मन की सुनता था

अपने मन की कहता था

अपने मन की करता था

वह मौलिक था

इसलिये बनावटी नहीं हो सकता था

सृजनात्मकता उसकी ताकत थी

इसलिये वह विध्वंस नहीं कर सकता था

वह संवेदनशील था 

इसलिये हानिकारक नहीं हो सकता था

उसकी कला विचार करने पर मजबूर करती थी

उसकी आवाज़ ऐशो आराम की तंद्रा को भंग करती थी

वह सुषुप्त चेतनाओं को जागृत करता था

उसे पाने की लालसा नहीं थी और न ही खोने का डर था

इसलिये वह भयभीत नहीं होता था

वह जीवन में और जीवंतता में विश्वास करता था

परन्तु एक दिन उसे मार दिया गया

क्योंकि वह लोगों का डर कम कर रहा था




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नेमप्लेट


मैं हूँ एक नेमप्लेट

कभी यहॉं लटक जाता हूँ, 

तो कुछ अंतराल के बाद 

कहीं और टांग दिया जाता हूँ। 



दरवाज़े के बाहर लटका 

मैं देखता रहता हूँ, 

चंद चेहरों में ओहदे का दबदबा,

तो कुछ की ऑंखों में अंजाना सा डर।

तमाम चेहरों पर हंसी और उल्लास 

तो कुछ के चेहरे गम से बदहवास



मैं देखता रहता हूँ, 

कुछ लोगों की ऑंखों में उम्मीदें, 

कुछ के दिलों में मायूसी, 

चंद चेहरों पर हैरत

तो कुछ दिलों में उदासी। 



मैं चश्मदीद हूँ 

लोगों के बदलते रंगत और हाव भाव का 

या फिर उनके अभिनय कौशल का। 



मेरे करीब से गुजरते हैं

कुछ प्रेम करने वाले तो, कुछ नफ़रत वाले चेहरे 

कुछ तटस्थ और कुछ सौम्य सादगी वाले चेहरे।

मैं दरवाज़े पर लटका सुनता रहता हूँ

चंद लोगों की खुसफुसाहटें, चंद साजिशें, 

कुछ का उपहास, 

तो कुछ का उन्मुक्त हास्य, 



मैं महसूस करता रहता हूँ

उनकी खामोशिया, उनकी दुश्वारियॉं, 

उनकी सरगोशियॉं उनकी तनहाईयॉं। 



मैं गवाह हूँ, 

उनकी मेहनत और लगन का 

उनके भीतर के जज़्बे का, 

कुछ बेहतर कर गुजरने के हौसले का। 



मैं राज़दार हूँ, 

दरवाज़े के बाहर के तमाम राज़ का 

और 

दरवाज़े के बाहर और भीतर के फर्क का।



मैं दरवाज़े पर लटका हुआ 

शरीक होता रहता हूँ, 

उनके तमाम सुख-दुख में, 



उनके गौरव के क्षणों में 

उनके हँसते मुस्कुराते पलों में। 

उनके त्योहारों में

उनके व्यवहारों में। 



मैं उन्हें बताना चाहता हूँ कि

मैं सिर्फ एक नेमप्लेट नहीं हूँ

मेरे भीतर भी एक इंसान है

जो सोचता है, समझता है

हँसता है, रोता है

फैसले करता है, 

कुछ सही, कुछ गलत

कभी नाराज़ तो कभी खुश होता है, 

कभी मायूस तो कभी अभिमान करता है

बिलकुल उन सब की तरह। 



मैं भी उनकी तरह बात करना चाहता हूँ

मिलकर हंसना चाहता हूँ

उनको समझना चाहता हूँ

उनके सुखदुख में शामिल होना चाहता हूँ

उनको अपनाना चाहता हूँ। 



उनके सपने बांटना चाहता हूँ

उनका राज़दार होना चाहता हूँ,

और चाहता हूँ कि वे

मुझे सिर्फ़ दरवाज़े पर न लटकाएं,



क्योंकि मैं सिर्फ एक नेमप्लेट नहीं हूँ

इस नेमप्लेट के साथ जुड़ी हैं

पद की गरिमा, तमाम जिम्मेदारियॉं

लोक सेवा की उम्मीदे, संस्था का मान सम्मान

सहकर्मियों की आशाएं, ग्राहकों का कल्याण 





लेकिन आज एकबार फिर 

एक दरवाजे से हटाकर मैं, 

दूसरे दरवाज़े पर टांग दिया जाऊंगा,

मैं एक नेमप्लेट हूँ। 



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संयोग


एक खूबसूरत , मगर अजनबी

हवा का झोंका 

जेठ की दुपहरी में

अपनी महक और शीतलता से 

मुझे महका रहा था।

एक स्मित हास्य और 

प्रश्नांकित आंखों से 

यह शीतल किंतु चंचल समीर 

कुछ असहज, कुछ अनमना

कुछ अनिश्चित सा 

बहा जा रहा था।

एक मनमीत से मिलन 

की आस और 

मन की बात बांट लेने 

का एहसास

तन मन को कसका रहा था।

ये महज़ संयोग था

या फिर

एक खूबसूरत, मगर नामुमकिन

और अनकहे रिश्ते

की बुनियाद का योग था।




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एक खूबसूरत एहसास


तुम महज़ एक खूबसूरत एहसास हो।

तुम्हें देखा नहीं जा सकता। 

नहीं। तुम्हें देखा जा सकता है, 

लेकिन, तुम्हें सिर्फ एक खास तरह से

देखा जा सकता है

किसी और तरह से नहीं।

वरना तुम , तुम नहीं रहोगी। 

तुम्हें छुआ नहीं जा सकता है। 

क्योंकि छूने से तुम, 

मैली हो जाओगी।

या फिर कुम्हला जाओगी।

तुम्हें कहा नहीं जा सकता है।

क्योंकि कहने में एहसास कम पड़ जाते है, 

या फिर जो मैं कहूंगा 

उसमें मैं अधिक और “तुम” कम हो सकती हो।

हां। तुम्हें सुना जा सकता है

क्यूंकि वह तुम हो

तुम सृजन हो, सच हो, मौलिक हो। 

तुम्हें सिर्फ महसूस किया जा सकता है

क्यूंकि तुम एक खूबसूरत एहसास हो 

जो कि अनदेखा,अनछुआ और अनकहा है

अगर मैं इस खूबसूरत एहसास को 

महसूस कर सकता हूं

तो तुम सदा के लिए हमारी हो।



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कॉनकॉर के साथियों

आओ हिंदी में काम करें



ये भाषा आपकी अपनी है



इसे उन्नत, विश्व प्रधान करें।



सरल सुगम है अपनी हिंदी



निज भाषा का उत्थान करें



अंग्रेजी की बेड़ी तोड़ें



हिंदी का कल्याण करें।



सहज संवाद की भाषा हिंदी



इस पर हम अभिमान करें



हर प्रांत की अपनी हिंदी



सबका हम सम्मान करें।



बोलचाल की हिंदी का



फाईलों में भी ध्यान करें



सरल शब्दों का समावेश कर



हिंदी लेखन को आसान करें।



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राजभाषा हिंदी

संविधान की धारा 343(1) के अनुसार भारतीय संघ की राजभाषा à¤¹à¤¿à¤¨à¥à¤¦à¥€ à¤à¤µà¤‚ à¤²à¤¿à¤ªà¤¿ à¤¦à¥‡à¤µà¤¨à¤¾à¤—री à¤¹à¥ˆà¥¤ संघ के राजकीय प्रयोजनों के लिये प्रयुक्त à¤…ंकों à¤•à¤¾ रूप भारतीय अंकों का अंतरराष्ट्रीय स्वरूप (अर्थात 1, 2, 3 आदि) है। किन्तु इसके साथ संविधान में यह भी व्यवस्था की गई कि संघ के कार्यकारी, न्यायिक और वैधानिक प्रयोजनों के लिए 1965 तक à¤…ंग्रेजी à¤•à¤¾ प्रयोग जारी रहे। तथापि यह प्रावधान किया गया था कि उक्त अवधि के दौरान भी राष्ट्रपति कतिपय विशिष्ट प्रयोजनों के लिए हिन्दी के प्रयोग का प्राधिकार दे सकते हैं।



 


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महिला दिवस

हम à¤µà¤¿à¤¶à¥à¤µ में लगातार कई वर्षों से अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस मनाते आ रहे हैं। महिलाओं के सम्मान के लिए घोषित इस दिन का उद्देश्य सिर्फ महिलाओं के प्रति श्रृद्धा और सम्मान बताना है। इसलिए इस दिन को महिलाओं के आध्यात्मिक, शैक्षिक, आर्थिक, राजनीतिक और सामाजिक उपलब्धियों के उपलक्ष्य में मनाया जाता है। आज अपने समाज में नारी के स्तर को उठाने के लिए सबसे ज्यादा जरूरत है महिला सशक्तिकरण की। महिला सशक्तिकरण का अर्थ है महिलाओं की आध्यात्मिक, शैक्षिक, सामजिक, राजनैतिक और आर्थिक शक्ति में वृध्दि करना। 



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राजभाषा

हमारी राजभाषा  हिंदी है। 


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पेड़ और मनुष्

मैने पेड़ से पूछा,
तुम युगों युगों तक रहे अचल,
और अविचलित तुमने दिया,
पथिकों को छाया और फल।
फिर भी तुम रहे सदा प्रसन्न,
और हरे भरे?

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